Ayurveda

Khand – Indian Sweets

जब से हमने खानपान में मीठे के विकल्प में #खांड, शक्कर, गुड़ के स्थान पर चीनी जो कि एक पक्का मीठा है रसायन है उसको अपनाया है हमारे देश में डायबिटीज उच्च रक्तचाप, चर्म रोग, हड्डियों के रोगों की भरमार हो गई। चीनी मिलों में चीनी जब बनाई जाती है तो सल्फर आदि रसायनों से उसके रंग को सफेद करने में पोषक तत्व विटामिन कैलशियम आदि निकल जाते हैं यही कारण है जिन तत्वों से चीनी बिछड़ जाती है मानव शरीर में पहुंचकर उन्हीं तत्वों को यह तेजी से ग्रहण कर लेती है है कैल्शियम हमारी हड्डियों में रहता है यह धीरे-धीरे हड्डी के कैल्शियम को निगलने लगती है।

शरीर के आधारभूत संगठन मंत्री कैल्शियम की कमी से ऐसा कोई रोग नहीं जो शरीर में ना आता हो। जब हमारे देश में चीनी का प्रचलन नहीं था लोगों की शारीरिक रचना ढांचा बहुत मजबूत होता था इसका केवल एक ही कारण था वह कच्चे प्राकृतिक मीठे देसी खांड का सेवन करते थे। घरों में माताएं बहने खांड को कूट कर रखती थी। शादी समारोह में खांड मीठे के तौर पर प्रयोग में लाई जाती थी। आयुर्वेद में खंड मिश्री आदि का सेवन शरीर के लिए सर्वोत्कृष्ट लाभकारी बतलाया गया है। यही कारण है जितनी भी आयुर्वेदिक दवाइयां खांड मिश्री के साथ ही प्रयोग में लाई जातीखांड शीतल, बल वीर्यवर्धक व घी के समान गुणों से युक्त मानी गई है। भारत की जलवायु की अनुकूल है इसका सेवन । अर्थव वेद में खांड के सेवन से संबंधित अनेक मंत्र है। मध्यकाल तक खांड व घी की का समान मूल्य देश में रहा है। खांड में गुड़ की तरह विटामिन कैल्शियम लोहा आदि खनिज सर्वाधिक मात्रा में होते हैं। हमारे प्राचीन भारत में वर्ष के 8 महीने खांड तथा 4 महीने गुड़ शक्कर का प्रयोग किया जाता था। जब यूनान की सभ्यता में मीठे के तौर पर लोग शहद से ही परिचित थे वह भी उच्च राज वर्ग के लोगों के इस्तेमाल में लाया जाता था आम आदमी को उपलब्ध नहीं था उस समय हमारे देश में गांव गांव में खांडसारी उद्योग विकसित था, घर -घर में गुड ,शक्कर ,खांड के ढेर मिलते थे।

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गन्ने के रस से राब, खांड , गुड ,शक्कर, बूरा, लाट, सीरा आदि उत्पाद प्राकृतिक तरीके से गाय के दूध से निखार देकर भिंडी के बीज से से गन्ने के गर्म रस को संशोधित परिमार्जित कर बनाई जाते थे। आज की तरह केमिकल मसाले का प्रयोग नहीं किया जाता था।
अंग्रेजों के शासन की बुरी दृष्टि हमारी स्वास्थ्यवर्धक ग्रामीण खांडसारी उद्योग व गन्ने की खेती पर पड़ी उन्होंने भारी टैक्स महानगरों के कोल्हू कलेसर पर लगाया नतीजा यह हुआ यह उद्योग चौपट हो गया स्वदेशी ग्रामीण खांडसारी उद्योग भी प्रभावित हुआ। यूरोप में चीनी पहुंचाने लिए भारत में चीनी मिलो का संयंत्र षड्यंत्र के तहत स्थापित किया गया। नतीजा आज चीनी मिल मालिक अंग्रेजों की तर्ज पर गन्ना किसानों का शोषण कर रहे हैं एक ऐसा उद्योग खांडसारी जो आमजन से संचालित होता था आज सरकारी नीतियों को का मोहताज हो गया है। ब्रिटेन तथा अमेरिका के लोग चीनी के दुष्प्रभावों से जागरूक हो गए हैं वह चीनी के विकल्प कच्चे मीठे जिसे रॉ शुगर ब्राउन शुगर कहा जाता है जो खांड का ही एक अलग रूप है उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन हम अंग्रेजों के मानस पुत्र गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त भारतीय चीनी रूपी सफेद जहर, राक्षसनी का सेवन कर रहे हैं, नतीजा आज यह है भारत मधुमेह ,उच्चरक्तचाप , brain stroke , लकवे के रोगियों ,दंत रोगियों का देश बनता जा रहा है। सामरिक दृष्टि से जितना खतरा हमारे देश को पड़ोसी देश चीन से है स्वास्थ्य की दृष्टि से उतना ही खतरा संकट हमारे सामने चीनी पैदा कर रही है।

लेखक : आर्य सागर खारी
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