पुष्यानुग चूर्ण घटक :-
पाठा, जामुन की गुठली की गिरी, आम की गुठली की गिरी, पाषाणभेद, रसौत, अम्बष्ठा, मोचरस, मंजीठ, कमल केशर, नागकेशर, अतीस, नागरमोथा, बेल-गिरी, लोध, गेरू, जायफल, काली मिर्च, सोंठ, मुनक्का, लाल चंदन, सोना पाठा (श्योनाक-अरलू) की छाल, इन्द्रजौ, अनन्तमूल, धाय के फूल, मुलेठी और अर्जुन की छाल|
मात्रा और अनुपान:- २ ग्रा सुबह-शाम भोजन के बाद शहद के साथ लेकर ऊपर से चावल का धोवन पानी ( रात को २ चम्मच चावल आधा गिलास पानी में भिगो दे| सुबह उसे मसलकर छान ले ) और प्रयोग करें|
परहेज:- गर्म और खट्टी चीजे|
गुण और उपयोग—-इस चूर्ण के सेवन से योनि-रोग, योनिदाह, सब प्रकार के प्रदर-रक्त, श्वेत, नीला, काला व पीला-योनिस्राव (प्रदर), योनिक्षत, बादी तथा खूनी बवासीर, अतिसार, दस्त में खून आना, कृमि और खूनी आँव जैसे रोग नष्ट होते हैं। स्त्रियों के बहुत-से रोगों की जड़ उनके गुह्य (गुप्त) स्थान के रोगों में मिल जाती है। अकाल (छोटी आयु) में अनि समागम तथा गर्भधारण, गुप्तांगों की सफाई न रखना, गर्भावस्था में प्रसव के समय या उसके बाद योग्य उपचार का अभाव, खट्टे या बासी आदि दोषकारक आहार-बिहारादि कारणों से स्त्रियों की गुप्तेन्द्रिय (योनि) में विकृति पैदा हो जाती है। फिर उसका परिणाम बुरा होता है। यथा-गर्भाशय फूल जाना या योनि से किसी प्रकार का स्राव शुरू हो जाना आदि। ऐसी अवस्था में पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग करना चाहिए।
किसी-किसी स्त्री को गर्भाशय बाहर निकल जाने की शिकायत बराबर बनी रहती है। ऐसी अवस्था में या योनि से किसी भी प्रकार का स्राव होने पर इसका उपयोग बहुत लाभ पहुंचाता है। सभी प्रकार के प्रदर रोगों में यह विशेष गुणकारी सुप्रसिद्ध औषधि है।
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